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नन्हीं सी परी हूं मैं भी (कविता)

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नन्हीं सी परी हूं मैं भी,

उड़ना चाहती हूं मैं भी,

लेकिन क्या करूं मैं तो?

लोहे के पिंजरे में बंद हूं,

मैं चाहती हूं कि उड़ जाऊं,

इन पक्षियों के साथ घुल मिल जाऊं,

जहां पर ले सकूं चैन की सांस,

उसी जगह पर जाना चाहूँ हर बार,

क्योंकि नन्हीं सी परी हूँ मैं भी,

उड़ना चाहती हूँ मैं भी,

ख़ुद के लिए जीना चाहती हूँ मैं भी,

ख़ुद के सपने देखना चाहती हूँ मैं भी,

न हो मुझ पर किसी की पाबंदी,

ऐसी ज़िंदगी चाहती हूँ मैं भी,

नन्हीं सी परी बनकर,

आसमानों में उड़ना चाहती हूँ मैं भी।।

यह कविता उत्तराखंड के गरुड़ से दिशा सखी पिंकी अरमोली ने चरखा फीचर के लिए लिखा है


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