विचारों को मैं सबसे महत्वपूर्ण मानता हूं। हर व्यक्ति इन्हीं के सहारे अपनी पूरी जिंदगी काट देता है। विचारों की सबसे अच्छी और बुरी बात यही है कि इनमें बदलाव कभी भी अपनी इच्छानुसार किया जा सकता है। ये विचार किसी की जिंदगी को आसान और किसी की जिंदगी को मुश्किल बना देते हैं। सब विचारों का ही तो खेल है।
एक व्यक्ति जो अपनी जाति को अपनी शान मानता है, अगर उसकी बेटी जाति के बाहर वाले लड़के से शादी करने लगे तो वह उसकी ऑनर किलिंग कर देगा, जबकि जाति नहीं मानने वाला व्यक्ति राजी खुशी अपनी बेटी का ब्याह किसी भी जाति के व्यक्ति से करा देगा।
सामंती सोच का व्यक्ति पूरे परिवार पर अपना अधिकार और स्वामित्व जमाता है जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करने वाला व्यक्ति अपने पूरे परिवार को साथ लेकर चलता है। एक पितृसत्तू के घर में उसकी स्त्री और बच्चे हमेशा दुखी रहेंगे जबकि समानतावादी सोच रखने वाले व्यक्ति के घर में दोनों हमेशा सुखी रहेंगे।
एक व्यक्ति विवाह करता है, उसके बाद बच्चे पैदा करता है, फिर उन्हें अपने मन मुताबिक चलाने की कोशिश करता है और जब वह उसके कहे में नहीं चलते तो पूरे जीवन दुखी होता रहता है, तो दूसरा व्यक्ति सबको मानसिक विकास करने और स्वतंत्र निर्णय लेने का पूर्ण अवसर देता है।
एक व्यक्ति धन और औरत के पीछे पूरी जिंदगी दौड़ता है और दूसरा इन दोनों को छोड़ भाग जाता है।
एक व्यक्ति अपना पूरा जीवन सिर्फ एक धर्म को मानने में गुजार देता है और उसे लगता है कि सिर्फ उसका ही धर्म सही है और बाकी गलत हैं , इसी वजह से बाकी धर्म के लोगों से वह घृणा करता रहता है, जबकि रामकृष्ण परमहंस जैसे लोग भी हुए हैं जिन्होंने हर धर्म को अंगीकार करके सत्य को जानने का प्रयास किया और बताया कि “हर धर्म से ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।”
एक स्त्री है जो अपने को देह से ऊपर नहीं उठा पाई है। सजती है, संवरती है, अपने प्रेमी को लुभाने की हर संभव कोशिश कर है और अपने को सिर्फ एक देह मान बैठी है; जबकि एक दूसरी स्त्री है जो अपने को तलाश रही है, अपने को तराश रही है, विचारों को निखार रही है, अपने प्रेमी के विचारों को देख रही है, दोनों के विचारों का तालमेल बैठा रही है, वह शरीर से ऊपर उठ अपना वजूद बना रही है।
Nikhil Kumar