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बेदर्द जमाना (कविता)

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कितना बेदर्द है ये जमाना, किसी पर रहम ना ये खाता, जो मन आये वो कह जाता, किसी की कुछ न सुनता, भाई भाई लड़ने लगे हैं, अब प्यार ना रहा पहले जैसा, जमाना बहुत बदल गया है , पहले जैसा कुछ ना रहा है , पड़ोस में रह कर भी कोई, किसी पड़ोसी को न जाने, क्या कहूं अब क्या सुनना रह जाना, देख लो कितना बेदर्द है ये ज़माना।। यह कविता उत्तराखंड के लामाबगड़ से दिशा सखी कविता जोशी ने चरखा फीचर्स के लिए लिख…

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