

बापू की बात
इंसान मर जाते है रह जाता है सिर्फ विचार जो शाश्वत है। हम समय के साथ आगे बढ़ जाते है मगर ज़रूरी ये है की वो विचार जो जीवन को सुगम सरल और प्रगतिशील बनाते है उन्हें साथ रखते है या प्रदर्शन मात्र के लिए प्रयोग करते है। गांधीवाद एक महान विचार है जो मानव को सुन्दर मानवता का आकार देने में सक्षम है। विज्ञान के हिसाब से इंसान और जानवर की दूरी आज से करीब साढ़े पाँच सौ करोड़ साल पहले ख़तम हो चुकी है मगर सामाजिक और व्याहवारिक अनुभव ये कहता है की अब ये दूरी कम हो रही है। मानवता,सत्य और प्रेम ही जीवन के आवश्यक स्तंभ है इनके बिना जीवन में जीना तो होगा मगर बिना ज़िन्दगी के। हम चाहे कितनी भी कोशिस कर ले लेकिन आक्रोश और अलगाव की भावना से हम जीवन में इस्थिरता और रस नहीं ला सकते।
महात्मा गाँधी के विचारों को समझने के लिए विशाल हृदय और सोच की ज़रुरत है क्योकि बदला और प्रतिशोध लेने की नियत तो किसी भी सामान्य विचार के व्यक्ति के पास हो सकती है मगर छमा करना महान व्यक्तित्व का प्रमाण है इसी विचारधारा के प्रचारक और प्रेरणा स्त्रोत है महात्मा गाँधी। उन्होंने अपने पूरे जीवन को एक प्रयोगशाला बनाया और धर्म ग्रंथों में दी गई सलाह को अपने जीवन में उतारा और उसी के माध्यम से आने वाली कठिनाइयों का सामना किया।
गांधी जी की मृत्यु पर लिखे संदेश में आइंस्टीन ने कहा था, ‘लोगों की निष्ठा राजनीतिक धोखेबाजी के धूर्ततापूर्ण खेल से नहीं जीती जा सकती, बल्कि वह नैतिक रूप से उत्कृष्ट जीवन का जीवंत उदाहरण बनकर भी हासिल की जा सकती है’ आइंस्टीन को जब-जब लगा कि विज्ञान और एकतरफा तर्कवाद मानवजाति के लिए संकट बन सकता है, तब-तब उनके सामने गांधी का जीवन एक आदर्श के रूप में सामने आता रहा। सिर्फ आइंस्टीन ही नहीं बल्कि नेल्सन मंडेला, बराक ओबामा और मार्टिन लूथर किंग जैसी बड़ी शख्शियतों ने गाँधी जी के विचारों से अपने जीवन के संघर्षों में मदत ली।
मै ये नहीं कहता की आप किसी की अन्ध भक्ती में लग जाइये और अपनी तर्क शक्ति को परे रख दीजिये मगर सत्य,प्रेम,अहिंसा का विकल्प नहीं है प्रेम हृदय में करुणा रख कर ही हो सकता है और इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है। हमारे देश की दशा और दिशा पूरी तरहा से बिगड़ी हुई मुझे उस दिन महसूस
जब मॉब लिंचिंग की एक के बाद एक घटना नज़र आने लगी। क्या हम इतनी नफरत कर सकते है की बेख़ौफ़ भीड़ में किसी एक व्यक्ति की हत्या कर दे और उसका जश्न भी मनाए। यही नहीं बल्कि पिछले वर्ष गाँधी जी की मृत्यु पर जश्न मानाने जैसी शर्मनाक घटना भी हुई जो आत्मा को कचोटती है और निराशा को चरम पर ले जाती है। आज वक्त गहरे मंथन और आत्म चिंतन का है। कुछ भी बनाने से पहले अच्छे इंसान बनिए क्योकि समाज स्नेह और इंसानियत से चलता है। और भी दुःख इस बात का है की शिक्षा जो सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखती है आज वह भी असफल है क्योकि हम अब शिक्षा को भी भौतिक सुख सुविधा मात्र का साधन समझते है शिक्षा के मूल्य तत्त्व को नहीं समझते हम बचपन में सिखाई हुई कविताओं को रट लेते है लेकिन " हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई " का मूल्य अर्थ क्या है वो नहीं समझते।
आज गांधीजी को गुजरे 70 साल से ज्यादा बीत गए, ऐसे मौके पर हम अपने अंदर की द्वेष और नफरत की भावना को दूर कर के ही उनको श्रद्धांजलि दे सकते है।
"वैश्णव जन तो तेने कहिये जे
पीड़ परायी जाणे रे
पर-दुख्खे उपकार करे तोये
मन अभिमान ना आणे रे"