Quantcast
Channel: Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3694

शादी: एक सत्य

$
0
0

कुछ रोज़ पहले इंस्टाग्राम की एक रील में माँ-बेटी की बात देखी। माँ झुंझलाते हुए अपनी बेटी से पूछती है, "तुम्हारी पीढ़ी को शादी क्यों नहीं करनी चाहती? शादी एक सत्य है, जैसे जीना और मरना एक सत्य है।" यह बस एक रील थी, ठीक उन्हीं अनगिनत रीलों जैसी जो आप और मैं रोज़ देखते हैं। फिर भी पता नहीं क्यों, यह बात मेरे मन में घर कर गई। उस महिला ने क्या ही ग़लत कहा था? आख़िर दिसंबर का महीना चल रहा है और शादी-ब्याह ज़ोर-शोर से चल रहे हैं। वो जगमगाती लाइटों की रोशनी, वो स्वादिष्ट खाना, नाच-गाना – भला किसे पसंद नहीं आएगा। मुझे यकीन है कि आप भी अपने नाते-रिश्तेदारों की शादी में जा रहे होंगे और शादी के सत्य को सार्थक होता देख रहे होंगे।

शादी का सत्य। क्या सत्य की कोई परिभाषा है? क्या मेरे और आपके सत्य में कोई अंतर है? वैसे अंतर होगा भी क्यों, सत्य के अनेक रूप नहीं होते झूठ की तरह। सत्य तो सूर्य के प्रकाश की तरह चमकदार होता है, जिसकी रोशनी को कोई भी अनदेखा नहीं कर सकता। तो फिर उस महिला और मेरा सत्य अलग हैं क्या? मैं भी शादी को सत्य क्यों नहीं मान सकता? शादी तो एक संस्कार है, एक पवित्र बंधन है, उसको कोई कैसे नकार सकता है।

मैंने अपने स्नातक के दिनों में पढ़ा था कि शादी एक व्यवस्था है, एक मूलभूत ढाँचा जिस पर हमारे समाज का निर्माण हुआ है। और हमें यह भी पढ़ाया गया था कि यह ढाँचा बुनियादी तौर पर असमानताओं से भरा हुआ है। इसमें जाति, लिंग, आर्थिक स्थिति, भाषा और न जाने कितने सामाजिक आधारों को देखा जाता है। हमें यह भी बताया गया था कि इस व्यवस्था में लड़के और लड़की को नापा-तोला जाता है, ठीक उसी तरह जैसे हम राशन वाले से सही तरह से सामान तौलने के लिए कहते हैं। इन बातों में कुछ भी नया नहीं है। आप सभी ने यह बातें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में पढ़ी, सुनी या देखी होंगी। और शायद आप यही समझते होंगे कि यह बातें खुद में एक सत्य हैं।

मैं अपने स्नातक के दिनों में भी इन बातों को सच मानता था और आज अपने पीएचडी के दिनों में भी ये बातें सच ही लगती हैं। बस फर्क यहाँ आया है कि अब कहीं-न-कहीं यह बेमतलब सी लगने लगी हैं। लगता है जैसे कि ये बातें बस किताबों में सिमट कर रह जाती हैं और असल दुनिया से इनका कोई लेना-देना नहीं होता। असल दुनिया में तो शादी एक सत्य है, जिसको चाहते या न चाहते हुए हम सब स्वीकार कर लेते हैं। और यही शादी की सत्यता का प्रमाण है।

शादी का सत्य चाहे कितना ही असमानता पूर्ण क्यों न हो, उसके ढाँचे में कितने ही संबंधों के लिए जगह न हो, पर वो ढाँचा है। और सब उस ढाँचे में अपने लिए जगह बनाना चाहते हैं – चाहे परिवार से लड़कर, आंदोलन करके, या न्यायालय का मार्ग अपनाकर। सब को उस ढाँचे की स्वीकृति चाहिए। इसीलिए शादी एक सत्य है।

क्या इस सत्य को बदला नहीं जा सकता? अनगिनत बुद्धिजीवियों ने इस पर लिखा है, चिंतन किया है और आज भी कर रहे हैं। और यह चिंतन ही शादी की सत्यता को सार्थक बनाता है और मुझे और आपको इस सत्य से जोड़कर रखता है – चाहे हम चाहें या न चाहें। क्योंकि आखिरकार, शादी एक सत्य है।शादी: एक सत्य


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3694

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>