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श्रृंगार हैं या हथकड़ियां? (कविता)

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ज़ेवर है या हथकड़ियां? होता ये महिलाओं का श्रृंगार, देख लो और सुन लो औरतों, जिन्हें समझती हो तुम शृंगार, तुम्हारे हाथों की हथकड़ियां हैं आज, हाथ की चूड़ी और गले की माला, ये सब हैं हथकड़ियों का ताला, हाथ में कलम और जाना स्कूल, ये है हथकड़ियों से मुक्ति का ताला, पढ़ लिख कर तुम्हें आगे है बढ़ना, ऐसी हथकड़ियों से मुक्त रहना॥ यह कविता उत्तराखंड के गरुड़ से दिशा सखी अंजली आर्या ने चरखा फीचर्स…

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