

जेलों की स्तिथि पर पढ़ते और फील्ड काम के दौरान एक बात बेहरत तरीके से समझ आई कि किसी भी जेलर या जेल अधीक्षक की मंशा अगर जेलों और कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार के साथ उनके लिए सुधारात्मक कार्य करने की रहे तो यह बहुत हद तक निश्चित किया जा सकता है की जेल और कैदी दोनों की दशा और दिशा में बेहतरीन प्रभाव देखने को मिलेंगे या मिल सकते है|
बिहार की आठ जेलों के अपने शोध के दौरान मैंने यह पाया की यह उतना मुश्किल भी नहीं की कोई प्रशासनिक अधिकारी अगर चुनौतियों के बीच काम करना चाहे तो उसे किया ना जा सके|
ऐसा ही मौका आया जब कैदियों की दशा और उनकी मानसिक स्तिथि को जानने के क्रम में ही मार्च 2021 में बिहार के गया सेंट्रल जेल जाना हुआ| तब वहां श्री रामानुज राम जेल के उप अधीक्षक की भूमिका में थे| उसके बाद उन्होंने पटना बेऊर सेंट्रल जेल में अधीक्षक की भूमिका निभाई और मौजदा समय में बेतिया जिले की जेल में अधीक्षक के रूप में अपनी सेवा दे रहे है|
*जेल के तत्कालीन उप अधीक्षक श्री रामानुज राम के साथ इंटरव्यू के बाद की तस्वीर।श्री प्रवीण कुमार का आभार जिन्होंने जेल प्रशासन से इस इंटरव्यू के लिए समय दिलवाने में मदद की थी।*
गया सेन्ट्रल जेल के भीतर एक सकारात्मक माहौल स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। हर कोई स्वतंत्र और तनावमुक्त दिखाई दे रहा था। कैदी उप अधीक्षक से डरते नहीं थे| वे उनके प्रति बहुत सम्मान दिखाते थे और उनकी उपस्थिति को बहुत ग्रहणशील थे। यह व्यवहार कैदियों में मानसिक रूप से अकेला पड़ने को रोकने में कार्य करता है|
हो सकता है की यह गया की ऐतिहासिक भूमि का असर भी हो जो उस जेल में एक शांति देखने को मिली| एक महिला कैदी से बात चित के दौरान यह स्पष्ट भी हुआ की शायद ये इस ज्ञान की मीट्टी का कमाल हो की जेल की चारदीवारी में भी उनको एक सुकून और पर्यावरण के समीप अपने आप पर लगे आरोपों से कोर्ट में लड़ने की ताकत दे रहा हो| जिसमें जेल अधीक्षक के महिलाओं सहित अन्य कैदियों के लिए उठाये गये सकारात्मक कार्य महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे|
जेल के भीतरी आहाते सहित कैदियों से बात करने के क्रम में श्री रामानुज ने कहा था की आप आराम से महिलाओं संग बातचीत कर सकती है और उनसे जो पूछना हो पूछ सकती है | मेरे पूछने पर की क्या वो साथ नहीं चलेंगे महिला वार्ड में तो उनके शब्द थे की आपको महिलाये जो भी बताएं वो आप लिखिए| हो सकता है वो कुछ बताना चाहती हो और मुझे सामने देख कर झिझक जाये| यह बहुत बड़ी बात थी की कोई अपने काम को लेकर संतुष्ट और चिंतामुक्त था|
किसी भी शोधकर्ता के लिए ऐसे समय का मिलना उसके शोध के लिए बहुत गहरी जानकारियों को एकीकृत करने का अच्छा अवसर देता है|
गया सेन्ट्रल जेल - महिला वार्ड- मार्च, 2021
अपने साक्षातकार के दौरान कुछ जानकारियों को संग्रहित किया था जो इस प्रकार है:
8 मार्च को विश्व महिला दिवस के अवसर पर महिला वार्ड में नई रसोई स्थापित की गई। यह महिला कैदियों के लिए एक अलग व्यवस्था थी, जहाँ वे खाना बनाने में व्यस्त हो सकती थीं।
• महिलाओं के लिए सात वार्ड हैं, जिनमें रात में सुविधा प्रदान करने के लिए प्रत्येक में बाथरूम जुड़ा हुआ है । स्वच्छता का अच्छा ध्यान रखा गया था।
• महिलाओं को अपना नियमित काम करने की अनुमति थी, उनमें से कुछ पढ़ रही थीं, जबकि अन्य अपने सांसारिक गतिविधियों में व्यस्त थीं। विशेष रूप से उन लोगों के लिए एक स्वतंत्र और अलग अध्ययन कक्ष का प्रावधान था, जो आगे की पढ़ाई करना चाहते थे। एक कैदी इस सुविधा का उपयोग कर रही थी जो जूडीसरी की शिक्षा ले रही थी।
• सभी कैदियों को जेल के लैंडलाइन से जेल के बाहर अपने परिवार के सदस्यों के साथ टेलीफोन पर बातचीत करने की सुविधा प्रदान की जा रही थी। वे इस सुविधा का उपयोग महीने में दो बार (15 दिनों में एक बार) कर सकते हैं और उस दिन दो कैदियों ने इस सुविधा का उपयोग किया भी जा रहा था।
• मनोरंजन के लिए उच्च अधिकारियों से उचित अनुमति के साथ हर कमरे में एक टीवी स्थापित किया गया था।
• टीवी सेटअप के पीछे की कहानी - 2018 में, अपने पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद, उप अधीक्षक को महिला वार्ड में झड़पों की दैनिक शिकायतों से जूझना पड़ता था । इन झगड़ों को हल करने के लिए, उन्होंने एक वार्ड में टीवी सेट उपलब्ध कराने का विचार बनाया। इस उपाय से महिला कैदियों के बीच अराजकता और झगड़ों में कमी देखी गई। वे सभी सामूहिक रूप से अब टीवी देखने में व्यस्त थीं और उनमें आगे जाकर भाईचारा विकसित हुआ । इन परिणामों से उत्साहित होकर अधिकारी ने शेष वार्डों में टीवी सेट लगाने की अनुमति मांगी।
कैदियों पर लगे आरोपों को समझने औए उनकी प्रवृति को देखते हुए उनके भीतर सुधर के लिए कार्य करना जिससे वो समाज में दोबारा अपने को स्थिरता के साथ आगे लेकर चले| जरूरी है की ऐसी व्यवस्था करने वालों को हम लिखे, पढ़े और दूसरों के लिए प्रसारित करे| ताकि अन्य जेलों में भी इस तरह के सराहनीय कार्य हो सके और कैदियों में कोई मानसिक विकार न उत्पन्न हो|
आज राज्य भर में मिशन विहान के अंतर्गत जेलों में कई कार्यक्रम चलाये जा रहे है ताकि सभी कैदियों को योग, चिकित्सा सिविर और मनोचिकित्सकों के साथ बातचीत से जोड़ा जा रहा है|
कुछ समस्याए यहाँ भी रही| जिनपर और काम किये जाने की संभावना है जैसे अन्य जेलों की तरह वहाँ भी कई वृद्ध कैदी थे, जिनमें से कुछ 90 वर्ष से अधिक उम्र के थे। वृद्ध लोगों को जेल से रिहा किया जाना चाहिए, खासकर उन लोगों को जो मामूली मामलों में बंद हैं या चिकित्सा समस्याओं से पीड़ित हैं। इसके साथ की जेल कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। सेहत और खाने- पिने सहित ठण्ड या बरसात के मौसम में कुछ और बेहरत कार्य होने चाहिए|
हालाँकि भीतरी वातावरण सभी जेलों में एक जैसा नहीं है पर इसके लिए उचित कदम उठाये जाने चाहिए| जिससे की किसी भी कैदी के मस्तिष्क में अपने-आप को लेकर नकारात्मक सोच न पैदा हो| और दिशा में अधिक कार्य करने की आवश्यकता है|
सभी कैदियों को समय अनुसार परिवार के बात करने, उनको चिठ्ठी लिखने, अख़बार पढने के अलावा दिन के उजाले में जेल प्रांगन में घूमने जैसी छोटी जरूरतों की छुट दी जानी चाहिए| जो माताएं अपने बच्चों संग है उनको भी एक अच्छा वातावरण देने पर अधिक से अधिक कार्य करने की जरूरत है|
जेल के भीतर रोजगार के साधनों को और अधिक बढ़ाने की जरूरत है| जिससे की वहां रहने वाले अपने समय का सदुपयोग करने के साथ अपने लिए आमदनी भी कर सके|
अंत में, बिहार की जेलों में शोध कार्यों के लिए भीतरी ढांचों को देखने और समझने की व्यवस्था की जानी चाहिए| ऐसा ना हो की सिर्फ किसी NGO या पहचान के व्यक्ति को पुल बनाना पड़े| बाहर के सामाजिक जोड़ को भीतरी दुनिया से हमेशा जुड़ा होना चाहिए| यह इन्सान को उसकी अपनी व्यक्तिगत सोच और मनोदशा को ठीक रखने में मदद करता है| जो उनको कई बीमारियों से भी दूर रखेगा|