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भारत में नास्तिकता को एक टैबू की तरह देखा जाता है।

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भारत में नास्तिकता को अक्सर एक टैबू के रूप में देखा जाता है। जैसे ही किसी को पता चलता है कि कोई व्यक्ति नास्तिक है, समाज में उसके प्रति एक नकारात्मक धारणा बनने लगती है। अधिकतर लोग मान लेते हैं कि नास्तिक ईश्वर का विरोधी है, उसमें नैतिकता का अभाव है, और वह हर तरह के अनैतिक कार्यों में लिप्त होगा। यह धारणा न केवल गलत है, बल्कि नास्तिकता की वास्तविक समझ से भी कोसों दूर है। नास्तिकता कोई विद्रोह नहीं, बल्कि एक तार्किक और मानवतावादी दृष्टिकोण है, जो जीवन और नैतिकता को अलग नजरिए से देखता है।

नास्तिकता का अर्थ है आस्तिकों द्वारा किए गए किसी सुपर पावर या अननेचुरल कार्यों का प्रमाण के अभाव में अस्वीकार करना। इसका यह मतलब नहीं कि नास्तिक व्यक्ति नैतिकता, करुणा, या मानवता से रहित होता है। नास्तिक हर चीज को तर्क, प्रमाण, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर परखता है। वह जीवन को किसी दैवीय उपहार के बजाय एक प्राकृतिक प्रक्रिया मानता है, जो विकास, पर्यावरण, और मानवीय अनुभवों का परिणाम है। यह दृष्टिकोण नास्तिकता को एक संवेदनशील और जिम्मेदार जीवन जीने का आधार प्रदान करता है, जिसमें नैतिकता का स्रोत ईश्वर नहीं, बल्कि मानवीय मूल्य और सामाजिक भलाई होती है।

भारत जैसे देश में, जहां धर्म और आध्यात्मिकता जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, नास्तिकता को समझना और स्वीकार करना कई लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। धार्मिक परंपराएं और सामाजिक मान्यताएं अक्सर यह धारणा बनाती हैं कि नैतिकता और अच्छाई केवल धर्म या ईश्वर के विश्वास से ही संभव है। लेकिन यह सोच नास्तिकों के साथ अन्याय करती है। नास्तिक व्यक्ति भी उतना ही नैतिक और संवेदनशील हो सकता है जितना कोई धार्मिक व्यक्ति। उसकी नैतिकता का आधार सहानुभूति, तर्क, और मानवता पर टिका होता है। उदाहरण के लिए, एक नास्तिक व्यक्ति किसी की मदद इसलिए करता है क्योंकि वह मानता है कि यह सही है, न कि किसी दैवीय पुरस्कार या सजा के डर से।

नास्तिकता को गलत समझने का एक कारण यह भी है कि लोग इसे अक्सर धर्म-विरोधी मान लेते हैं। वास्तव में, नास्तिकता धर्म का विरोध नहीं करती; वह केवल ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाती है और तर्क-आधारित जीवन जीने पर जोर देती है। नास्तिक व्यक्ति धार्मिक लोगों के साथ सम्मान और सहयोग के साथ रह सकता है, बशर्ते उसकी विचारधारा को भी स्वीकार किया जाए।

आज जरूरत इस बात की है कि समाज नास्तिकता को एक वैकल्पिक दर्शन के रूप में देखे, न कि किसी खतरे या अनैतिकता के प्रतीक के रूप में। नास्तिकता मानवता को केंद्र में रखती है। नास्तिकता तर्क के साथ जीवन को समझने की कोशिश करती है। यदि हम खुले दिमाग से इसे समझें, तो यह समाज में आपसी समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा दे सकती है। नास्तिकता कोई अभिशाप नहीं, बल्कि एक ऐसा दृष्टिकोण है जो हमें मानवता की गहराई को समझने और जीवन को और सार्थक बनाने की प्रेरणा देता है।

✍️ #Manjeet 


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