

शिक्षा केवल ज्ञान का संचरण नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, आर्थिक सशक्तिकरण और सांस्कृतिक चेतना का माध्यम है। यह व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है और समाज को भेदभाव, अंधविश्वास और असमानता से मुक्त करने की दिशा में अग्रसर करती है। विशेषकर भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में, शिक्षा की भूमिका और भी निर्णायक हो जाती है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन इस सत्य का प्रतीक है कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का सबसे प्रभावी साधन है। उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज, बॉम्बे से स्नातक की पढ़ाई की और बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति प्राप्त कर उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका गए। वहाँ उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं, और फिर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डी.एससी. की डिग्री हासिल की। उनका प्रसिद्ध उद्घोष—”शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो”—आज भी सामाजिक न्याय और समता के लिए संघर्षरत प्रत्येक व्यक्ति के लिए दीपस्तंभ है।
शिक्षा के प्रसार हेतु डॉ. अंबेडकर के प्रयास: डॉ. अंबेडकर ने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का औज़ार माना और वंचित वर्गों के लिए शैक्षिक अवसर सुलभ कराने के लिए अनेक प्रयास किए। उन्होंने 1945 में “पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी” की स्थापना की। जिसके अंतर्गत सिद्धार्थ कॉलेज, मुंबई और मिलिंद कॉलेज, औरंगाबाद जैसे संस्थानों की स्थापना हुई। उनके प्रयासों से समाज के उस वर्ग में भी आत्मविश्वास पनपा जिसने सदियों तक पढ़ने और आगे बढ़ने का स्वप्न भी नहीं देखा था।
आज के संदर्भ में शिक्षा की प्रासंगिकता: भारत डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है। स्मार्टफोन, इंटरनेट और ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म्स ने शिक्षा को पहले की तुलना में अधिक सुलभ बनाया है। फिर भी समाज के कुछ वर्ग ऐसे हैं जो अभी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हैं। यह स्थिति डॉ. अंबेडकर के उस सपने के अनुरूप नहीं है। जिसमें उन्होंने समतामूलक और शिक्षित भारत की कल्पना की थी।
शिक्षा के प्रसार के लिए सरकारी योजनाएं:
सर्व शिक्षा अभियान: सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए।
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA): माध्यमिक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए।
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV): वंचित वर्ग की लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय।
राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (NSP): विभिन्न छात्रवृत्तियों के लिए एकीकृत मंच।
नव भारत साक्षरता कार्यक्रम: वयस्क शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए।
जब तक समाज का हर बच्चा—चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, भाषा या आर्थिक वर्ग से आता हो—अच्छी शिक्षा से नहीं जुड़ता, तब तक समावेशी विकास एक अधूरा स्वप्न ही बना रहेगा।
शिक्षा से ही समता का निर्माण संभव: डॉ. भीमराव अंबेडकर ने शिक्षा को केवल एक शैक्षणिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और अधिकारों की प्राप्ति का सशक्त माध्यम बनाया। उनका जीवन इस सच्चाई का प्रमाण है कि शिक्षा से समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी समाज की सबसे ऊँची शिखर तक पहुँच सकता है। आज आवश्यकता है कि हम उनकी सोच को आत्मसात करें, शिक्षा को अपने समाज के हर कोने तक पहुँचाएं और ऐसे भारत के निर्माण में अपना योगदान दें जो समतामूलक, सशक्त और प्रगतिशील हो। यही डॉ. अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आईपी