

मां के नाम पर स्टेटस लगाना अब फैशन हो गया है। रसोई में कोई और पसीना बहा रहा होता है, और तस्वीर किसी और की प्रोफाइल पर चमक रही होती है।
हर दिन जो स्वादिष्ट खाना परोसा जाता है, वो सिर्फ स्वाद नहीं, तपस्या होती है। जब कभी खुद पकाना पड़ जाए, तो झटपट, बेस्वाद, जैसे-तैसे खा लोगे।
पर मां?
हर दिन मन से, ध्यान से, प्रेम से रचती है भोजन।
मां कोई 'सर्विस प्रोवाइडर' नहीं है, न बर्तन धोने की मशीन, न वॉशिंग मशीन, न किचन स्टाफ।
मदर'स डे मनाना है तो एक दिन रसोई में खड़े होकर समझिए उस थकान को, जो हर निवाले में छुपी होती है। तस्वीरें लगाकर मातृत्व का दिखावा मत कीजिए। अगर सच में सम्मान है, तो थोड़ा बोझ भी उठाइए। मां को दिखावा नहीं, साथ चाहिए।