बचपन में जब आसमान को देखता था,
तो लगता था – मैं भी उड़ सकता हूँ।
मुझे नहीं पता था कि ये उड़ान कैसे होगी,
पर दिल में एक सपना था –
कुछ बड़ा करना, कुछ ऐसा करना जिससे
माँ-पापा को मुझ पर गर्व हो।
स्कूल के दिनों में जब लोग कहते थे,
"तेरे जैसे लोग नहीं कर सकते ये सब,"
मैं मुस्कुराता था… क्योंकि मुझे पता था –
मेरा सपना कमजोर नहीं है, बस अभी छोटा है।
समय बीतता गया…
कभी असफलताएँ मिलीं, कभी अपनों से ताना।
कभी खुद पर शक हुआ, कभी दुनिया पर गुस्सा।
पर एक चीज़ कभी नहीं बदली –
वो सपना जो दिल में था।
अब जब मैं हर सुबह उठता हूँ,
तो खुद से कहता हूँ –
"आज एक कदम और… उस सपने की तरफ।"
मेरा सपना अब भी दूर है,
पर मैं भी वही बच्चा हूँ –
जिसने कभी आसमान देखकर उड़ने की ठानी थी।