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खोदी धरती बोई बीज (कविता)

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खोदी धरती बोई बीज,

ये मिट्टी है बड़े काम की चीज,

इसने दिया भोजन हमको,

सूरज ने दिया जब ताप,

फूटा अंकुर उसमें जब,

ऊपर आया अपने आप,

ऊपर का संसार उसने पाया सुंदर,

लिया जब रुप उसने नन्हे पौधे का,

हरा रंग जब उसने पाया,

फिर तो सबके मन को भाया,

पत्तियों का हरा रंग,

क्लोरोफिल कहलाता है,

सूरज हवा पानी से मिलकर,

वह भोजन स्वयं बनाता है,

धीरे धीरे बढ़ता पौधा,

घर आंगन की शोभा बढ़ाता,

कलियां निकलती फूल खिलते,

खुशबू उसकी महकी प्यारी,

खाद पानी अगर दिया तुमने,

उसे फिर बढ़ते न देर लगती,

उचित पोषण जब पाता पौधा,

फिर बन जाता है बड़ा पेड़

इसीलिए मैं करती यह चीज़,

खोदी धरती बोई बीज।।

यह कविता गरुड़, उत्तराखंड से दिशा सखी किरण दोसाद ने चरखा फीचर के लिए लिखा है


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